April 30, 2024

जनसंख्या शिक्षा का अर्थ | जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य | महत्व,परिभाषा, आवश्यकता 2022

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जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य एंव अर्थ


वर्तमान युग विस्फोटो का युग है। जनसंख्या विस्फोट ने प्रगति और विकास के मार्ग में बाधा खड़ी कर दी हैं। समाजशास्त्री जनसंख्या विस्फोट के कारण मानव अस्तित्व के भविष्य के बारे में चिंचित हो उठे हैं। जनसंख्या वृद्धि प्रमुख माननीय समस्या के रूप में उदित हुई है ।

इससे जीवन का प्रत्येक पक्ष प्रभावित हुआ है व्यक्तिगत रूप में व्यक्तियों के स्वास्थ्य धन व प्रसंता पर प्रभाव पड़ा है राष्ट्रीय आय और उत्पादन के प्रभावित होने से राष्ट्रीय प्रगति अवरुद्ध हुई है। अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर शांति और सुरक्षा का प्रश्न व्यापक होने लगा है। व्यक्ति और समाज के सामने इस समस्या ने रोटी,कपड़ा,मकान जैसी न्यूनतम आवश्यकताओ की पूर्ति में बांधा पहुंचाई है।

व्यक्तियों और राष्ट्रों में जीवन स्तर में गिरावट का प्रमुख कारण भी जनसंख्या बृद्धि हैं। अनेक समाजिक,आर्थिक ,राजनैतिक तथा शैक्षिक समस्याओं का मूल भी जनसंख्या विस्फोट अथवा जनसंख्या वृद्धि की समस्या वृद्धि की समस्या को गम्भीर समस्या बताते हुए बहुत से वैज्ञानिक ने अपना मत दिया हैं।

डॉ लल्ला – “जनसंख्या विस्फोट की गम्भीरता समस्या ने हमारे समय के हमारे विश्व को मुसीबत में फंसा दिया हैं”।

“The most serious problem of population explosion has plagued or word in our time”

भारत मे जनसंख्या वोस्फोट ने विशाल एंव विकराल स्वरूप धारण कर लिया है। यह रूप कितना विकराल हैं, इस बात का अनुमान सहज ही निम्न आकड़ो से ज्ञात किया जा सकता हैं –

  1. भारत मे प्रत्येक डेढ़ सेकेंड के बाद एक बच्चे का जन्म होता हैं।
  2. विश्व का प्रत्येक सातवां व्यक्ति भारतीय है या पूरे विश्व की जनसंख्या का सातवां भाग भारत में निवास करता हैं।
  3. भू-भाग की दृष्टि से विश्व का 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही हमारे पास है।
  4. भारत की वर्तमान जनसंख्या 95 करोड़ के लगभग हैं जो 2025 तक 100 करोड़ के पर पहुंच जाएगी।
  5. भारत का प्रतिवर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व 178 है जबकि विश्व का औसत 27 ही हैं।
  6. भारत मे जनसंख्या वृद्धि की दर 65 हजार प्रतिदिन हैं जबकि विकसित देशों यह 1500 प्रतिदिन हैं।
  7. भारत मे प्रतिवर्ष 21 करोड़ बच्चो का जन्म होता हैं जिनमें से 13 करोड़ जीवित बचते हैं।
  8. भारत के प्रति व्यक्ति की आय 669रु है जो विश्व मे न्यूनतम हैं।
  9. भारत की जनसंख्या का लगभग 42% भाग 15 वर्ष से कम आयु वर्ग का हैं।
  10. जनसंख्या के साथ बेरोजगारी की संख्या 192.78 लाख थी।
  11. सरकार तथा अन्य संस्थाओं के अथक प्रयासों के बावजूद भी साक्षरता का प्रतिशत 30 से ऊपर नही बढ़ पा रहा है।
  12. इन सब परिस्थितियों का मूल कारण जनसंख्या वृद्धि ही हैं।

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जनसंख्या शिक्षा की परिभाषा


जनसंख्या शिक्षा शब्द का विशद रूप से प्रचलन हो गया हैं मगर अभी तक जनसंख्या शिक्षा का न तो सामान्य रूप में स्वीकार कोई परिभाषा है, न ही कोई अर्थ है। इसका सर्वप्रथम वर्णन यूनेस्को की ओर से बैंकाक में 1970 में आयोजित की जाने वाली “जनसंख्या शिक्षा संगोष्ठी” द्वारा इस प्रकार किया गया।

जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक कार्यक्रम हैं, जिसमें परिवार ,समाज,राष्ट्र एंव विश्व की जनसंख्या की स्तिथि का अध्ययन किया जाता हैं।

स्टेगनर के अनुसार – जनसंख्या शिक्षा जनसंख्या व पर्यावरण की शिक्षा हैं क्योंकि पर्यावरण को जनसंख्या से अलग नही किया जा सकता।

टेलर के अनुसार – जनसंख्या -शिक्षा एक ओर तो परिवार को नियोजित करने की प्रेरणा देती है, दूसरी ओर जनसंख्या की समस्या उसके सम्भावित परिणाम तथा सम्भावित विकल्पों की जानकारी देती हैं।

एवरी एंव काकैण्डल के अनुसार – जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का विकास गृह-प्रबंध की कुशलता, विवाह,माता-पिता के उत्तरदायित्व की तैयारी,बालक की देखभाल एंव विकास तथा यौन-शिक्षा की जानकारी देनी है।

अंत मे यह पता चला कि- जनसंख्या की तीव्र गति से वृद्धि के परिणामस्वरूप मानव जीवन के समाजिक ,आर्थिक,राजनैतिक तथा सांस्कृतिक पक्षो पर पड़ने वाले कुप्रभावो के प्रति जागरूकता एंव सम्बन्ध समाधानों के विषय मे बैचारिक क्रांति की शैक्षिक व्यवस्था ही “जनसंख्या शिक्षा” हैं।

जनसंख्या शिक्षा का महत्व

आज के परिवर्तित समाज का नव निर्माण करने के लिये जनसंख्या शिक्षा आवश्यक है। जनसंख्या शिक्षा के महत्व तथा आवश्यकता क ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित उद्देश्य दिये गए हैं-

1: – जीवन के वर्तमान तथा भावी गुणात्मक सुधार के लिए जनसंख्या शिक्षा के महत्व को समझना जिसमें आर्थिक विकास और स्वास्थ्य शिक्षा ,आवास,भोजन,एंव जीवन की अन्य सुविधाओ के उच्च की स्तर की प्राप्ति शामिल हैं।

2:- छोटे परिवार में व्यक्तिगत जीवन की गुणात्मकता का ज्ञात करना।

3:- विश्व जनसंख्या के संदर्भ में देश की जनसंख्या की संरचना तथा वृद्धि दर सहित जनसंख्या गति विज्ञान की आधारभूत समझ विकसित करना।

4 :- छात्रों को जनसंख्या विश्लेषण की तकनीकी का ज्ञान कराना।

5 :- सही समय पर परिवार के आकार के बारे में सही निर्णय की क्षमता विकसित करना।

जनसंख्या शिक्षा के महत्व व आवश्यकता के आधार पर जनसंख्या के उद्देश्य शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर बालको के शारिरिक ,मानसिक एंव संवेगात्मक विकास को ध्यान में रखकर निश्चित किये गए हैं।

कक्षा 1 से कक्षा 8 के तक के लिए जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य –


1 :- बालको में उनके पास-पड़ोस ,प्रदेश व राष्ट्र की बढ़ती हुई जनसंख्या के प्रति जागरूकता कराना।

2 :- बालको को छोटे परिवार के भोजन,कपड़ा,मकान तथा शिक्षा सम्बन्धी लाभो से परिचित कराना।

3 :- बालको में व्यक्तिगत एंव पर्यावरण स्वच्छता की आदत को विकसित करना।

4 :- बालको को जनसंख्या घनत्व सम्बन्धी मानचित्र,साधारण आयत चित्र आदि बनाने का प्रशिक्षण देना।

5 :- बालको को घनी आबादी वाले शहरी ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं में अंतर स्पष्ट कराना।

कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के लिये जनसंख्या-शिक्षा के उद्देश्य-


1 :- जनसंख्या घनत्व के प्रत्यय का ज्ञान कराना।

2 :- जनसंख्या वृद्धि से उत्तपन्न सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का अवबोध कराना।

3 :- परिवार के आकार,आय एंव जीवन स्तर में सम्बन्ध स्थापित कराना।

4 :- अच्छे जीवन स्तर के लिये छोटे परिवार की उपयोगिता तथा कम आय वाले बड़े परिवार की कठिनाईयो की अनुभूति कराना।

5 :- बड़े शहरों में झुग्गी-झोपड़ी तथा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समाजिक एंव स्वस्छ्ता कठिनाइयों का अभ्यास कराना।

जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता

जनसंख्या शिक्षा क्यो प्रदान की जाय, इसका स्पष्ट ही है कि आज जनसंख्या इतनी तीव्र गति से बढ़ रही है कि भौतिक साधनों का विकास बहुत पिछे छूट रहा हैं। भौतिक साधनों व जनसंख्या के मध्य असन्तुलन बढ़ रहा हैं। ये समस्याएं शोषण व उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही हैं।समाजिक अन्याय बढ़ रहा हैं। अतः इन परिस्थितियों से निपटने के लिये शिक्षाशात्री यह अनुभव करने लगे हैं कि इस समस्या को वैचारिक क्रांति का रूप प्रदान करना होगा। अतः जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता को महसुस किया जाने लगा है। जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

1 :- संस्कृति एंव संस्कारो के पोषण के लिये :- शिक्षा सभी प्रकार के संस्कारों और प्रयोगों की मूल भूमि होती है। जनसंख्या शिक्षा को व्यवहार और आचरण की प्रक्रिया में शामिल करके मानव के चरित्र का हिस्सा बनाना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है क्योंकि बालक, पालक और अध्यापक सब मनुष्य की ही संस्कृति के पोषक है और शिक्षा में जिस संस्कृति का समावेश होगा। तब से ही ” जीवन की गुणवत्ता” की बात दोहराई जाने लगी है क्योंकि संस्कारो का प्रवाह यंही से आरम्भ होता हैं। यही कारण है कि जनसंख्या शिक्षा को शिक्षा में प्रविष्ट किया गया हैं।

2 :- “सीमित परिवार की आवश्यकता के लिये – छोटा परिवार सदैव ही सुखी होता हैं” यह उक्ति उचित ही हैं। जितना परिवार का आकार संक्षिप्त होगा, वह परिवार उतना ही समृद्ध एंव सुखी-खुशियों से हरा-भरा होगा तथा वँहा बच्चे का मानसिक विकास भी पूर्णरूपेण होता हैं। भारत मे विवाह की आयु सीमा अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है अतः युवक एंव युवतियों को विवाह से पूर्ण जनसंख्या- वृद्धि से3 उत्तपन्न समस्याओं से अवगत कराना आवश्यक है। जनसंख्या शिक्षा द्वारा बालक – बालिकाओ में यह विचार इस प्रकार समाविष्ट कर दिया जाय कि वे अपनी समझ-बुझ से अपने आप परिवार नियोजित कर सके।

जनसंख्या शिक्षा की समस्याएं

जनसंख्या शिक्षा का क्षेत्र अत्यंत व्यापक एंव विस्तृत है। इसके अंतर्गत जनसंख्या की वृद्धि की गति, स्वरूप, व्यक्ति, परिवार, समाज,राष्ट्र, वितरण एंव विश्व पर पड़ने वाले उनके प्रभावों का अध्ययन सम्मिलित हैं। जनसंख्या शिक्षा की समस्याएं अत्यंत जटिल एंव उलझी हुई है।

1 :- जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी विषय-वस्तु की समस्या – जनसंख्या शिक्षा की विभिन्न शिक्षा स्तरों पर क्या विषय-वस्तु हो, यह अभी तक स्पस्ट नही है। सभी स्तरों पर जनसंख्या शिक्षा के सम्भन्धी साहित्य का अत्यंत अभाव के परिणामस्वरूप छात्रों को जनसंख्या की वृद्धि के वास्तविक आकड़ो और व्यक्ति समाज, राष्ट्र के जीवन पर इसके प्रयासों का पूर्ण ज्ञान नही हो पाता हैं । इस कारण ही विद्यलयी स्तर पर जनसंख्या शिक्षा का समुचित रूप से प्रसार नही हो पा रहा हैं।

2 :- जनसंख्या शिक्षा के लिये अध्यापकों की समस्या- यदि जनसंख्या शिक्षा पृथक विषय के रूप में पढ़ाया जाए तो शिक्षको की समस्या आएगी। यदि समेकित रूप में प्रस्तावित की जाए तो शिक्षको के अल्पकालिक एंव दीर्घकालिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करके उन्हें पूर्णतः दक्ष करना होगा क्योंकि जनसंख्या शिक्षा की शिक्षण विधि उपयुक्त न होने पर हानिया होती हैं। जनसंख्या शिक्षा पर बहुत कम साहित्य है तथा विद्वानों द्वारा बहुत ही कम पुस्तकें लिखी गयी है अतः पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नही हो पाती है । पाठ्यक्रम में अभी तक जनसंख्या शिक्षा को कोई स्थान नही दिया गया हैं।

3 :- जनसंख्या-शिक्षा सम्बन्धी शोध कार्य की समस्या- हमारे देश मे जनसंख्या शिक्षा की शैशवावस्था है। फलस्वरूप विद्वानों एंव सुशिक्षित व्यक्तियों को भी जनसंख्या वृद्धि के परिणामो एंव प्रभावों को पर्याप्त ज्ञान नही है। लोगो मे अनेक प्रकार की भ्रांतिया है जो इसके विकास मार्ग में बाधक सिद्ध हो रही हैं।

जनसंख्या शिक्षा की विशेषताएं

1 :- जनसंख्या शिक्षा पृथक से विषय नही हैं- जनसंख्या शिक्षा अन्य विषयों से पृथक विषय कदापि नही है वरन इसे विभिन्न विषयों के अंतर्गत ही पढ़ना पड़ता है। जनसंख्या शिक्षा को पाँच विषयो- सामान्य विज्ञान,हिंदी,गणित,समाजिक ज्ञान गृहविज्ञान आदि के पाठ्यक्रम के विषयों से सम्बंधित विषय-वस्तु से जोड़ा गया है। जंहा-जंहा इससे समन्धित विषय-वस्तु उपलब्ध है उससे छात्रों को अवगत कराया जाता है। तथा जनसंख्या शिक्षा के महत्व को बताया जाता है।

2 :- जनसंख्या शिक्षा समस्यात्मक हैं- जनसंख्या शिक्षा का आधार समस्या है तथा किसी समस्या के परस्पर विरोधी पहलुओं का निरीक्षण कर छात्रों को निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता प्रदान करती हैं जिससे छात्र हल निकालने का प्रयास कर सके।

3 :- जनसंख्या शिक्षा लचीली हैं- जनसंख्या शिक्षा लचीलेपन से युक्त है। यह स्थिर ठोस मान्यताओं पर आधारित नही है। क्षेत्रीय आवश्यकताओ के अनुसार ही इसे पढ़ाया जा सकता हैं। प्रत्येक देश या राज्य जनसंख्या शिक्षा को अपने राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय उद्देश्यों के अनुसार ही परिभाषित कर छात्रों को शिक्षा दे सकता हैं।

4 :- जनसंख्या शिक्षा समस्याओं का निवारण भी है – यह शिक्षा समस्याओं का ज्ञात कराने के साथ ही साथ उन समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत करती हैं ताकि मानव की अपनी प्रगति के साथ-साथ देश की उन्नति भी हो सके। जैसे- जनसंख्या की वृद्धि से प्राप्ति व्यक्ति की आय में कमी होती है जिससे लोगो का आर्थिक व सामाजिक स्तर निम्न होता है। अतः हमें जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में ही आय स्त्रोतों को बढ़ाना चाहिए।

5 :-जनसंख्या शिक्षा का सम्बंध जीवन स्तर के सुधार से है- जनसंख्या शिक्षा को गुणात्मक दृष्टि से जाँचती हैं। यह जीवन स्तर के गुणात्मक उन्नयन से सम्बंधित है। जनसंख्या शिक्षा केवल संख्याओं का निबंध नही है, बल्कि जीवन का गुणात्मक दृस्टिकोण ही जनसंख्या शिक्षा का केन्द्र बिंदु हैं।

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